रविवार, 7 अगस्त 2011

साउथ ब्‍लॉकः 1989 बैच के आईएएस करें इंतज़ार


 




यह घाव पर नमक छिड़कने के जैसा ही है. 1989 बैच के आईएएस अधिकारियों की सूची में शामिल करने के मसले पर और देरी हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई नामों पर अभी विचार चल ही रहा है. कम से कम इस बैच के 22 अधिकारियों को संयुक्त सचिव या इसके समकक्ष स्तर के लिए चयनित किया गया है. स्पष्ट तौर पर, इस देरी से सब निराश हैं.

सुंदराजन संयुक्त सचिव बन सकती हैं

1982 बैच और केरल कैडर की आईएएस अधिकारी अरुणा सुंदराजन शीघ्र ही भारत सरकार में संयुक्त सचिव के रुप में ज्वाइन कर सकती हैं. वह हाउसिंग एंड पॉवर्टी एलीविएशन मंत्रालय में यह पदभार संभालेंगी. यह पद नवसृजित है.

विवेक, चंडीगढ़ (यूआईएआई) के नए एडीजी

1993 बैच के आईटीएस अधिकारी विवेक कुमार चंडीगढ़ (यूआईएआई) के नए एडीजी के तौर पर शीघ्र ही नियुक्त हो सकते है. वह 1988 बैच के आईडीएसई अधिकारी बृजमोहन मिट्टा की जगह लेंगे जो यूआईएआई में ज्वाइन न करने की वजह से हटा दिए गए हैं.

सूचना एवं प्रसारण में उदय की जगह राजीव

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में निफ्ट के महानिदेशक और 1979 बैच के आईएएस अधिकारी राजीव टाकरू अतिरिक्त सचिव के रुप में ज्वाइन करेंगे. वे 1976 बैच और मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी उदय कुमार वर्मा की जगह लेंगे, जो हाल ही में एमएसएमई के सचिव नियुक्त किए गए थे.

उपाध्याय बीएसएनएल की अगले सीएमडी

बीएसएनएल का अगला सीएमडी कौन होगा, यह अब साफ हो गया है. 1975 बैच के आईटीएस अधिकारी आर के उपाध्याय, जो फिलहाल टेलीकम्यूनिकेशन कंसलटेंट्‌स इंडिया लिमिटेड (टीसीआईएल) में सीएमडी पद पर सेवारत हैं, बीएसएनएल के वर्तमान सीएमडी कुलदीप गोयल की जगह लेंगे. यह पद 31 जुलाई से ही रिक्त पड़ा था.

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साउथ ब्‍लॉकः 1991 बैच के लिए बुरी खबर



1991 बैच के आईएएस अधिकारियों के लिए अच्छी खबर नहीं है, क्योंकि उन्हें भारत सरकार की सूची में शामिल करने के लिए होने वाली बैठक की तारीख अभी तक तय नहीं की जा सकी है.

सेठ बनेंगे सचिव?

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग का नया सचिव कौन बनेगा? इस बात को लेकर चर्चा गर्म है. वर्तमान सचिव शांतनु कोंसुल की विदाई 31 अक्टूबर तक होने वाली है. शांतनु को शुंगलु कमेटी का सदस्य बनाया गया है, जो राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार की जांच करेगी. शांतनु की जगह कौन? इसके लिए कई नामों पर विचार चल रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा अजीत कुमार सेठ का नाम चर्चा में है. सेठ अभी कैबिनेट सचिवालय में सचिव स्तर पर तैनात हैं. सेठ 1974 बैच और उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं.

आईडीएएस-आईआईएस बनेंगे जेएस

चार अधिकारियों के लिए अच्छी खबर है. 1988 बैच के दो आईडीएएस अधिकारियों दिविका रघुवंशी एवं अलका शर्मा और 1985 बैच के दो आईआईएस अधिकारियों ओंकारमल केडिया एवं मनोज कुमार पांडेय के नाम संयुक्त सचिव के लिए बनाई गई सूची में शामिल कर लिए गए हैं.

बिस्वास बनेंगे निदेशक

प्रेमांशु बिस्वास के बारे में यह कयास लगाया जा रहा है कि वह जल्द ही डीआईपीपी में निदेशक बनाए जा सकते हैं. 1990 बैच के बिस्वास आईओएफएस अधिकारी हैं.

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1- चार साल में 247 पत्रकारों की हत्‍या हुई

भड़ास4मीडिया -

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पाकिस्तानी पत्रकार सलीम शाहजाद और भारत के ज्योतिर्मय डे की हत्या भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ अभिव्यक्ति के सिद्धांत पर अमल करते हुए हुई. डे और शाहजाद इस मुहिम में अकेले नहीं रहे, यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक 2006 से 2009 तक दुनिया में 247 पत्रकार सूचना क्रांति को आगे बढ़ावा देते हुए कुर्बान हुए.
संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से 2009 के बीच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मुहिम को कलम के माध्यम से आगे बढाते हुए भारत में छह पत्रकार बलिदान हुए.
यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2006 में 69 पत्रकारों की हत्या हुई जिसमें सबसे अधिक 29 इराक, छह फिलिपीन, दो भारत, दो पाकिस्तान, तीन अफगानिस्तान, तीन रूस, चार श्रीलंका के थे. साल 2007 में सबसे अधिक 33 पत्रकार इराक में मारे गए जबकि सोमालिया में सात, अफगानिस्तान में दो तथा ब्राजील, तुर्की, मैक्सिको में एक.एक पत्रकार कुर्बान हुए.
साल 2008 में दुनिया में 49 पत्रकार मारे गए जिसमें 11 पत्रकार इराक में, जार्जिया में पांच, मैक्सिको और रूस में चार चार, फिलिपीन में तीन पत्रकार शामिल हैं. साल 2008 में भारत में भी चार पत्रकार चौथे स्तम्भ की रक्षा करते हुए शहीद हुए.
साल 2009 में 77 पत्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मुहिम को आगे बढ़ाते और भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाते हुए मारे गए. इस वर्ष सबसे अधिक 34 पत्रकार फिलिपीन में मारे गए जबकि सोमालिया में सात, रूस में चार, मैक्सिको में सात, इराक में चार, अफगानिस्तान में चार पत्रकार मारे गए. यूनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन वर्षों में पत्रकारों की हत्या के मामलों से स्पष्ट है कि मीडिया से जुड़े लोगों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये गए हैं.
यह दुखद है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसक गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं. अगर इनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये गए तो पत्रकार ऐसे भ्रष्ट तत्वों का 'आसान निशानाबने रहेंगे. रिपोर्ट के अनुसार, '2006 से 2009 के बीच पत्रकारों की हत्या के संबंध में बांग्लादेश, भारत, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, अल साल्वाडो, ग्लाटेमाला, इंडोनेशिया, लेबनान, म्यामां, फलस्तीन, फिलिपीन, रूस, तुर्की ने न्यायिक जांच करायी. जबकि इराक, अफगानिस्तान, चीन, श्रीलंका आदि देशों में ऐसे मामलों की न्यायिक जांच नहीं करायी गई.' साभार : आजतक
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सोनिया गांधी का 84 हजार करोड़ काला धन स्विस बैंक में!

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एक स्विस पत्रिका की एक पुरानी रिपोर्ट (http://www.schweizer-illustrierte.ch/zeitschrift/500-millionen-der-schweiz-imeldas-faule-tricks#) को आधार माने तो यूपीए अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के अरबों रुपये स्विस बैंक के खाते में जमा है. इस खाते को राजीव गांधी ने खुलवाया था. इस पत्रिका ने तीसरी दुनिया के चौदह ऐसे नेताओं के बारे में जानकारी दी थी, जिनके खाते स्विस बैंकों में थे और उनमें करोड़ों का काला धन जमा था.
रुसी खुफिया एजेंसी ने भी अपने दस्‍तावेजों में लिखा है कि रुस के साथ हुए सौदा में राजीव गांधी को अच्‍छी खासी रकम मिली थी, जिसे उन्‍होंने स्विस बैंके अपने खातों में जमा करा दिया था. पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री एवं वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता राम जेठमलानी भी सोनिया गांधी और उनके परिवार के पास अरबों का काला धन होने का आरोप लगा चुके हैं.
तो क्‍या केंद्र सरकार इसलिए भ्रष्‍टाचार और काले धन के मुद्दे को इसलिए गंभीरता से नहीं ले रही है कि सोनिया गांधी का काला धन स्विस बैंक जमा हैक्‍या केंद्र सरकार अन्‍ना हजार और रामदेव के साथ यह रवैया यूपीए अध्‍यक्ष के इशारे पर अपनाया गया था? क्‍या केन्‍द्र सरकार देश को लूटने वालों के नाम इसलिए ही सार्वजनिक नहीं करना चाहती है? क्‍या इसलिए काले धन को देश की सम्‍पत्ति घोषित करने की बजाय सरकार इस पर टैक्‍स वसूलकर इसे जमा करने वालों  के पास ही रहने देने की योजना बना रही हैऐसे कई सवाल हैं जो इन दिनों लोगों के जेहन में उठ रहे हैं.

काला धन देश में वापस लाने के मुद्दे पर बाबा रामदेव के आंदोलन से पहले सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार की खिंचाई कर चुकी है. विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नाम सार्वजनिक किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीते 19 जनवरी को सरकार की जमकर खिंचाई की थी. सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक पूछ लिया था कि आखिर देश को लूटने वालों का नाम सरकार क्‍यों नहीं बताना चाहती हैइसके पहले 14 जनवरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा था. पर सरकार कोई तार्किक जवाब देने की बजाय टालमटोल वाला रवैया अपनाकर बच निकली.

केंद्र सरकार के इस ठुलमुल रवैये एवं काले धन संचयकों के नाम न बताने की अनिच्‍छा के पीछे गांधी परिवार का स्विस खाता हैं. इस खाता को राजीव गांधी ने खुलवाया था. इसमें इतनी रकम जमा है कि कई सालों तक मनरेगा का संचालन किया जा सकता है. यह बात कही थी एक स्विस पत्रिका ने. 'Schweizer Illustrierte' (http://www.schweizer-illustrierte.ch/ )  नामक इस पत्रिका ने अपने एक पुराने अंक में प्रकाशित एक खोजपरक रिपोर्ट में राजीव गांधी का नाम भी शामिल किया था. पत्रिका ने लिखा था कि तीसरी दुनिया के तेरह नेताओं के साथ राजीव गांधी का खाता भी स्विस बैंक में हैं.

यह कोई मामूली पत्रिका नहीं है. बल्कि यह स्विट्जरलैंड की प्रतिष्ठित तथा मशहूर पत्रिका है. इस पत्रिका की 2 लाख 15 हजार से ज्‍यादा प्रतियां छपती हैं तथा इसके पाठकों की खंख्‍या 9 लाख 25 हजार के आसपास है.  इसके पहले राजीव गांधी पर बोफोर्स में दलाली खाने का आरोप लग चुका है. डा. येवजेनिया एलबर्टस भी अपनी पुस्‍तक 'The state within a state - The KGB hold on Russia in past and future' में इस बात का खुलाया किया है कि राजीव गांधी और उनके परिवार को रुस के व्‍यवसायिक सौदों के बदले में लाभ मिले हैं. इस लाभ का एक बड़ा भाग स्विस बैंक में जमा किया गया है.       

रुस की जासूसी संस्‍था केजीबी के दस्‍तावेजों में भी राजीव गांधी के स्विस खाते होने की बात है. जिस वक्‍त केजीबी दस्‍तावेजों के अनुसार राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी अपने अवयस्‍क लड़के (जिस वक्‍त खुलासा किया गया था, उस वक्‍त राहुल गांधी वयस्‍क नहीं थे) के बदले संचालित करती हैं. इस खाते में 2.5 बिलियन स्विस फ्रैंक है, जो करीब 2.2 बिलियन डॉलर के बराबर है. यह 2.2 बिलियन डॉलर का खाता तब भी सक्रिय था, जब राहुल गांधी जून 1998 में वयस्‍क हो गए थे. अगर इस धन का मूल्‍यांकन भारतीय रुपयों में किया जाए तो उसकी कीमत लगभग 10, 000 करोड़ रुपये होती है. इस रिपोर्ट को आए काफी समय हो चुका है, फिर भी गांधी परिवार ने कभी इस रिपोर्ट का औपचारिक रूप से खंडन नहीं किया और ना ही इसके खिलाफ विधिक कार्रवाई की बात कही.  


आपको जानकारी दे दें कि स्विस बैंक अपने यहां जमा धनराशि का निवेश करता है, जिससे जमाकर्ता की राशि बढ़ती रहती है. अगर केजीबी के दस्‍तावेजों के आधार पर गांधी परिवार के पास मौजूद धन को अमेरिकी शेयर बाजार में लगाया गया होगा तो यह रकम लगभग 12,71 बिलियन डॉलर यानी लगभग 48, 365 करोड़ रुपये हो चुका होगा. यदि इसे लंबी अवधि के शेयरों में निवेश किया गया होगा तो यह राशि लगभग 11. 21 बिलियन डॉलर होगी जो वर्तमान में लगभग 50, 355 करोड़ रुपये हो चुकी होगी.

साल 2008 में आए वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले यह राशि लगभग 18.66  बिलियन डॉलर यानी 83 हजार 700 करोड़ के आसपास हो चुकी होगी. वर्तमान स्थिति में गांधी परिवार के पास हर हाल में यह काला धन 45,000 करोड़ से लेकर 84, 000 करोड़ के बीच होगा. चर्चा है कि सकरार के पास ऐसे पचास लोगों की सूची आ चुकी है, जिनके पास टैक्‍स हैवेन देशों में बैंक एकाउंट हैं. पर सरकार ने अब तक मात्र 26 लोगों के नाम ही अदालत को सौंपे हैं. एक गैर सरकारी अनुमान के अनुसार 1948 से 2008 तक भारत अवैध वित्तीय प्रवाह (गैरकानूनी पूंजी पलायन) के चलते कुल 213 मिलियन डालर की राशि गंवा चुका है. भारत की वर्तमान कुल अवैध वित्तीय प्रवाह की वर्तमान कीमत कम से कम 462 बिलियन डालर के आसपास आंकी गई है, जो लगभग 20 लाख करोड़ के बराबर है, यानी भारत का इतना काला धन दूसरे देशों में जमा है.

यही कारण बताया जा रहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट से बराबर लताड़ खाने के बाद भी देश को लूटने वाले का नाम उजागर नहीं कर रही है. कहा जा रहा है कि इसी कारण बाबा रामदेव का आंदोलन एक रात में खतम करवा दिया गया तथा इसके पहले उन्‍हें इस मुद्दे पर मनाने के लिए चार-चार मंत्री हवाई अड्डे पर अगवानी करने गए. सरकार इसके चलते ही इस मामले की जांच जेपीसी से नहीं करवानी चा‍हती. इसके चलते ही भ्रष्‍टाचार के मामले में आरोपी थॉमस को सीवीसी यानी मुख्‍य सतर्कता आयुक्‍त बनाया गया, ताकि मामले को सामने आने से रोका जा सके.
भड़ास4मीडिया के कंटेंट एडिटर अनिल सिंह की रिपोर्ट
Anami Sharan Babal

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शिष्या को पास कराने के दो असिस्टेंट प्रोफेसरों ने शिष्या से देह की मांग की

बड़े बड़े लोग देह देखकर डोल जाते हैं. देवताओं के भी डोलने के किस्से हैं. आदमी तो आदमी ही है. गुरुओं के नीयत डोलने की खबरें आती रहती है.  ताजी सूचना जयपुर से है. राजस्थान विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के दो असिस्टेंट प्रोफेसरों ने शोध कर रही अपनी शिष्या से पास कराने के लिए देह की मांग कर दी. शिष्या के मुखर विरोध और पुलिस में शिकायत से एक गुरु गिरफ्तार हो गए हैं जबकि दूसरे सज्जन भागे हुए हैं. इससे पहले राजस्थान के ही सीकर नर्सिंग सेंटर में एक लड़की को पास कराने के बदले देह मांगने की खबर आई थी. मध्य प्रदेश में भी लड़कियों को पास कराने के लिए संगठित तौर पर देह शोषण की घटना हुई जिसकी अभी जांच चल रही है. राजस्थान यूनिवर्सिटी वाले मामले में फीजिक्स डिपार्टमेंट के दोनों असिस्टेंट प्रोफेसरों का नाम है ऋषि कुमार सिंघल और एस.एन. डोलिया. सिंघल गिरफ्तार हैं. डोलिया फरार हैं. छात्रा ने इस मामले की दो बार लिखित शिकायत विवि प्रशासन से की. पर उसकी सुनवाई नहीं हुई. उलटे प्रोफेसरों को बता दिया गया कि उनकी शिकायत की गई है. बाद में छात्रा ने सोमवार की शाम पुलिस अफसरों से मिलकर शिकायत की. मंगलवार को पुलिस ने सिंघल से पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सिंघल को आईपीसी के सेक्शन 376/511 और सेक्शन 354 के तहत गिरफ्तार किया गया. एस.एन. डोलिया की भूमिका की भी जांच हो रही है.

शोध छात्रा ने अपनी शिकायत में कहा कि वह गाइड ऋषि कुमार सिंघल और को-गाइड एस.एन. डोलिया के मार्गदर्शन में पीएचडी कर रही है. इस साल फरवरी में जब वह लैब में गई, तो सिंघल अकेले थे. उन्होंने पेपर पब्लिश होने पर मिठाई खिलाने को कहा. सिंघल ने छात्रा का हाथ पकड़ जबरदस्ती करनी चाही. विरोध करने पर सिंघल बोले कि पीएचडी के लिए तो यह सब करना पड़ता है. छात्रा के चिल्लाने पर सिंघल ने उसे छोड़ दिया. छात्रा का आरोप है कि सिंघल ने उसे बदनाम करने के लिए उसके चेहरे के साथ पोर्न फोटो बनाकर साइट पर डाल दी.
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दिल्‍ली मेट्रो रेल कारपोरेशन और इसकी ठेका कंपनियों द्वारा श्रम कानूनों का नग्‍न उल्‍लंघन

दिल्‍ली मेट्रो रेल कारपोरेशन और इसकी ठेका कंपनियों द्वारा श्रम कानूनों का नग्‍न उल्‍लंघन

दिल्‍ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्‍व में रविवार, 10 जुलाई 2011 को सुबह 11 बजे दिल्‍ली मेट्रो रेल के सैंकड़ों मजदूर और कर्मचारी जन्‍तर-मन्‍तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं और ई.श्रीधरन का पुतला फूंक रहे हैं। हम सभी इंसाफपसंद नागरिकों से अपील करते हैं कि इस प्रदर्शन में शामिल होकर मज़दूरों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करें और उनका हौसला बुलंद करें।
दिल्‍ली की शान कहे जाने वाले दिल्‍ली मेट्रो रेल कारपोरेशन और इसके कर्ता-धर्तामेट्रो-मैनई.श्रीधरन के पायबोस और सिजदे में सरकार से लेकर मीडिया तक हमेशा दण्‍डवत रहता है। दिल्‍ली का खाता-पीता मध्‍यवर्ग मेट्रो को देखकर फूला नहीं समाता है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि दिल्‍ली मेट्रो रेल को चलाने वाले मज़दूर और कर्मचारी, जिनमें से 90 प्रतिशत से भी अधिक ठेके पर काम करते हैं, किन हालात में और कितने वेतन पर काम करते हैं। दिल्‍ली मेट्रो के स्‍टेशनों पर काम करने वाले 10,000 से भी ज्‍यादा कर्मचारी जो टिकट वेंडिंग, हाउसकीपिंग और सिक्‍योरिटी में लगे हुए हैं, न्‍यूनतम वेतन, ई.एस.आई., पी.एफ., और कई बार तो साप्‍ताहिक छुट्टी जैसे बुनियादी श्रम अधिकारों से वंचित हैं। नौकरी पाने के लिए ठेका कंपनियों को इन्‍हेंसिक्‍योरिटीराशि के नाम पर 40 से 70 हज़ार रुपये तक देने पड़ते हैं। वास्‍तव में यह तथाकथित सिक्‍योरिटीराशि मज़दूरों से नियुक्ति के समय इसलिए ली जाती है कि वे किसी भी शोषण-उत्‍पीड़न के खिलाफ कोई आवाज़ न उठा सकें। यह डी.एम.आर.सी और ठेका कंपनियों के शोषण के तंत्र की सिक्‍योरिटीकी गारंटी करती है!
कानूनन टिकट-वेंडिंग स्‍टाफ की न्यूनतम मजदूरी करीब 8 हज़ार है, जबकि वास्‍तव में उन्‍हें साढ़े चार से पांच हज़ार रुपये तक दिये जाते हैं; यही स्थिति सफाई कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मियों की भी है। डी.एम.आर.सी. के पास अपने ठेका कर्मचारियों का कोई रिकॉर्ड नहीं है, जिससे कि साफ है कि वह श्रम कानूनों के कार्यान्‍वयन को सुनिश्‍चित नहीं कर रही है। यह सीधे-सीधे ठेका मज़दूर कानून, 1971 के प्रावधानों का उल्‍लंघन है, जिसके अनुसार श्रम कानूनों के लागू होने का सुनिश्‍चित करना प्रधान नियोक्‍ता का काम है। वेतन दिये जाते समय डी.एम.आर.सी. का कोई प्रतिनिधि स्‍टेशनों पर मौजूद नहीं होता है। ऐसे में, डी.एम.आर.सी. ठेका कंपनियों से ही यह पूछ कर सनद कर लेती है कि आप कानूनों का पालन कर रहे हैं? इससे बड़ा मज़ाक और क्‍या हो सकता है कि कानून का उल्‍लंघन कर रही कंपनियों से ही पूछा जाय कि आप कहीं कानून का उल्‍लंघन तो नहीं कर रहे!
इन्‍हीं धांधलियों और मज़दूरों के अधिकारों के उल्‍लंघन के खिलाफ दिल्‍ली मेट्रो कामगार यूनियन पिछले ढाई वर्षों से संघर्ष कर रही है और उसके संघर्ष के बूते सफाईकर्मियों के वेतन में पहले भी बढ़ोत्‍तरी हो चुकी है। लेकिन अभी भी पूरे स्‍टेशन स्‍टाफ के श्रम अधिकारों का बुरी तरह उल्‍लंघन हो रहा हैा हायर-फायर की नीति, घूसखोरी, न्‍यूनतम मज़दूरी का न दिया जाना, कंपनियों की मज़दूरों पर तानाशाही, दुर्व्‍यवहार आम बातें हैं।
इसके खिलाफ दिल्‍ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्‍व में रविवार, 10 जुलाई 2011 को सुबह 11 बजे दिल्‍ली मेट्रो रेल के सैंकड़ों मजदूर और कर्मचारी जन्‍तर-मन्‍तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं और ई.श्रीधरन का पुतला फूंक रहे हैं। हम सभी इंसाफपसंद नागरिकों से अपील करते हैं कि इस प्रदर्शन में शामिल होकर मज़दूरों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करें और उनका हौसला बुलंद करें।

 

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कब तक होगा बुंदेलखंड के साथ खिलवाड़

केंद्र-प्रदेश की राजनीति और लाल फीताशाही में उलझा बुंदेलखंड का विकास

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लखनऊ : बुंदेलखण्‍ड पर यूपी में आज हुई प्रदेश के साथ केंद्र के आला अफसरों की बातचीत ने साफ कर दिया कि बुंदेलखण्‍ड का मामला प्रशासनिक तौर पर तो पूरी तरह सुलझा हुआ है, लेकिन राजनीतिक जोड़तोड़ के चलते उसे रणक्षेत्र में बदल कर केवल राजनीतिक गोटियां ही खेली जा रही हैं। अफसरों की आज हुई इस गोलमेज कांफ्रेंस में यह बात खुल कर सामने आ गयी कि केंद्र ने दो साल पहले ही प्रदेश सरकार को बुंदेलखंड के विकास और वहां पानी वगैरह की व्‍यवस्‍था के लिए साढे़ तीन हजार करोड़ की मदद जारी कर दी थी, लेकिन अब यह दुर्भाग्‍य ही कहा जाएगा कि यूपी के अफसरान इस योजना को समय से पूरा ही नहीं करा सके। अब यूपी के अफसरों ने केंद्र के अफसरों से मिन्‍नत की है कि इस योजना का कार्यकाल एक साल के लिए और बढ़ा दिया जाए।

जाहिर है कि इस घटना ने यूपी की नौकरशाही और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ को पूरी तरह उजागर तो कर ही दिया है। इस घटना ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि अगर प्रदेश सरकार की मांग को पूरा करते हुए केंद्र ने 80 हजार की योजना को मंजूरी दे दी होती, तो प्रदेश सरकार की मशीनरी उसे कभी भी अमली जामा नहीं पहना सकती थी।

दरअसल, राहुल गांधी ने बुंदेलखण्‍ड में एक दलित महिला के घर रोटी क्‍या खा ली, मायावती की छाती पर मानो सांप ही लोट गया। तब से लेकर लगभग हर मौके पर वे बुंदेलखंड की उपेक्षा के लिए केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार पर कड़े आरोप लगाती रही हैं। इतना ही नहीं, इसके लिए 80 हजार करोड़ रुपयों के पैकेज तक की मांग कर डाली थी और हर मौके पर यही कहा कि केंद्र सरकार जानबूझ कर इस विशेष सहायता को जारी नहीं कर रही है ताकि बुंदेलखंड का पिछड़ापन बरकरार रहे और कांग्रेस उस आग पर अपनी रोटी सेंकती ही रहे।

केंद्र सरकार द्वारा बुंदेलखण्‍ड के लिए जारी की गयी 3506 करोड़ रुपयों के उपयोग और उसकी समीक्षा के लिए आज लखनऊ में केंद्र और प्रदेश के अफसरों के बीच लम्‍बी बातचीत हुई। इस बैठक में केंद्र सरकार के डॉक्‍टर जेएस सामरा, डॉक्‍टर केएस रामचंद्रा के साथ प्रदेश सरकार के विभिन्‍न विभागों के अफसरों के साथ मुख्‍य सचिव अनूप मिश्र ने भी भाग लिया। इस बैठक में मुख्‍य सचिव के सामने ही डॉक्‍टर सामरा ने इस योजना के कार्यक्रमों के क्रियान्‍वयन में आने वाली शिकायतों का प्राथमिकता के साथ निराकरण करने की बात कही। साथ ही उन्‍होंने योजना में बनाये जा रहे डगवेलों से पानी उठाये जाने की भी व्‍यवस्‍था किये जाने की खास जोर दिया। उनके निर्देशों और अपेक्षाओं पर यूपी सरकार के हाथ बांधे खड़े अफसरों ने राज्‍य सरकार की ओर से कड़े और संतोषजनक कदम उठाये जाने का आश्‍वासन दिया और वायदा किया कि इसमें किसी भी तरह की कोताही नहीं बरती जाएगी।

लेकिन इसके बाद ही जो कुछ हुआ वह प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ छेड़े गये दुष्‍प्रचार का खुलासा कर गया। यूपी के अफसरों ने बताया कि इस योजना पर काम तो 09-10 में ही काम शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। इस बारे में जो तर्क दिया गया वह न केवल स्‍तब्‍धकारी था, बल्कि प्रदेश सरकार के झूठ के पुलिंदे को भी खोल गया। यूपी के अफसरों ने इस काम के समय से पूरा न हो पाने के सवालों पर जवाब दिया कि चूंकि नहरों, जलाशयों, तालाबों और कुओं में पानी भरा होने के चलते काम किया जा पाना सम्‍भव नहीं हो पाता है। यह तर्क लोगों की समझ से परे ही रहा। वजह यह कि किसी भी वित्‍तीय वर्ष के अंत यानी 31 मार्च से बहुत पहले ही प्रदेश के यह सभी ज्‍यादातर जल स्रोत पूरी तरह सूख चुके होते हैं। कहने की जरूरत नहीं, कि अत्‍यधिक जल दोहन के चलते भूगत जल स्‍तर लगातार पाताल की ओर भाग रहा है और बारिश के मौसम के चंद महीनों तक ही इन परम्‍परागत जल स्रोतों में ही पानी रहता है। जाहिर है कि यूपी के अफसरों ने बिलकुल सफेद झूठ का सहारा लिया।

बहरहाल, यूपी के अफसरों ने तो यहां तक कह दिया कि इस योजना के लिए निर्धारित 31 मार्च-12 तक इसे पूरा कर पाने में बड़ी दिक्‍कतें आयेंगी, इसीलिए उन्‍होंने बैठक में मौजूद केंद्र के अफसरों से अनुरोध किया कि इस योजना के समापन के लिए एक वर्ष का समय-सीमा विस्‍तार और दे दिया जाए।


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दिल्‍ली का बाबू : पत्नियों की महिमा



 

हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है. यह कांग्रेसी नेता भी भलीभांति जानते हैं. लेकिन हाल के दिनों में आयकर विभाग का कोपभाजन बने मध्य प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस कहावत को एक बार फिर सत्य साबित कर दिया है. छापों के दौरान आयकर विभाग के अधिकारियों ने पाया कि अधिकांश नौकरशाहों की पत्नियां बीमा एजेंट का काम करती हैं. अपने रसूखदार पतियों की एक्स्ट्रा आमदनी का निवेश करने के लिहाज़ से यह धंधा का़फी उपयोगी है.
ये पत्नियां अपने पति और उनके वरिष्ठों की एक्स्ट्रा आमदनी का निवेश तो करती ही हैं, ठेकेदार और ठेका कंपनियों को बीमा योजनाएं बेचकर अपने कारोबार को भी बढ़ाती हैं. अब यदि पति महत्वपूर्ण विभागों में रसूखदार ओहदों पर काम कर रहे हों तो इसके अपने फायदे हैं. आयकर विभाग के छापों के बाद आईएएस अधिकारी अरविंद जोशी और पीडब्ल्यूडी के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर दीपक असाई को उनकी पत्नियों के साथ दोषी पाया गया.
सूत्रों पर भरोसा करें तो इस सारे घालमेल के पीछे भी एक महिला का दिमाग ही काम कर रहा था. शुरू में बीमा एजेंट का काम करने वाली सीमा जायसवाल बाद में एक बीमा कंपनी में शाखा प्रबंधक बनी तो पीडब्ल्यूडी, मध्य प्रदेश सड़क निर्माण प्राधिकरण और जल संसाधन जैसे विभागों में अपनी ऊंची पहुंच का फायदा उठाते हुए सीमा ने नौकरशाहों की पत्नियों को भी एजेंट के रूप में काम करने के लिए राजी कर लिया. रोचक तथ्य तो यह है कि अब जब सरकार दोषी अधिकारियों के खिला़फ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में कार्रवाई करने की तैयारी कर रही है, तो ये पत्नियां चैन की बंसी बजा रही हैं. आखिर सरकार अपने अधिकारियों के खिला़फ ही तो कार्रवाई कर सकती है.


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संसदीय सत्रों का भी ऑडिट हो



 

आज भारत में ऐसा एक भी संस्थान नहीं है, जिसके कार्यकलापों का एक निश्चित अवधि में अंकेक्षण (ऑडिट) न किया जाता हो. अंकेक्षण समय की मांग और ज़रूरत दोनों है. यह वह हथियार है, जिसके माध्यम से हम किसी भी संस्थान की ख़ामियों का पता लगा सकते हैं और उनका निराकरण कर सकते हैं. लेकिन इस संदर्भ में अफसोस की बात यह है कि आज भी हमारे देश में संसदीय सत्रों के दौरान संपादित होने वाली महत्वपूर्ण गतिविधियों का कोई भी ब्यौरा आम आदमी को मुहैया नहीं कराया जाता है. जबकि उसका वहां होने वाले कार्यों से सीधे तौर पर जुड़ाव होता है. बात स़िर्फ जानकारी देने तक ही सीमित हो तो इसे हज़म भी किया जा सकता है, लेकिन जब मामला आम आदमी की भलाई और देश के विकास से जुड़ा हो तो संसदीय सत्रों में संसद द्वारा पारित किए जाने वाले विधेयकों के महत्वपूर्ण विषयों के बारे में सांसदों की गंभीरता एवं संवेदनशीलता का सीएजी या विशेष समिति से अंकेक्षण ज़रूर कराया जाना चाहिए.
बजटीय सत्र के दौरान राज्यसभा में आवंटित अवधि का 40 प्रतिशत हिस्सा हंगामे की भेंट चढ़ गया. सांसदों के अड़ियल रवैये की वजह से एक भी प्रश्न का जवाब नहीं दिया जा सका. लोकसभा की हालत भी कमोबेश राज्यसभा की तरह ही रही. वहां भी निर्धारित समय के भीतर किसी भी उल्लेखनीय कार्य का निष्पादन नहीं किया जा सका, जो पिछले बजटीय सत्र से भी बदतर है. वह भी सांसदों द्वारा निर्धारित संसदीय समय से अधिक देर तक बैठने के बावजूद.
भारतीय सांसदों का आचरण, व्यवहार एवं व्यक्तित्व इस कदर विविधतापूर्ण और अविश्वसनीय है कि कोई भी इनके दांव-पेंच के बारे में किसी तरह की भविष्यवाणी नहीं कर सकता. केवल इस वजह से कोई भी संसदीय सत्र यहां पूरी शिद्दत के साथ कभी भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाता है. हाल में बजट सत्र का समापन हुआ है. इस सत्र की हालत भी एक आम आदमी की भांति पस्त थी. पूरा सत्र शोरशराबा और असफलता का प्रतीक था. पूरे बजट सत्र में कुल 64 बिल प्रस्तुत किए जाने थे, लेकिन 28 बिल ही पेश किए जा सके. सरकार की नीयत 28 बिलों को पारित करने की थी, किंतु 6 बिलों को ही पारित किया जा सका. आज सभी क्षेत्रों में प्रदर्शन आधारित तनख्वाह की बात की जा रही है. ऐसे में अगर हम बजटीय सत्र के बरक्स में बात करें तो निर्धारित बजट और वास्तविक उपलब्धि के बीच बहुत ही बड़ी और कभी भी न ख़त्म होने वाली एक अंतहीन खाई थी. बजटीय सत्र में मात्र 9.37 प्रतिशत कार्यों को ही अमलीजामा पहनाना बहुत गंभीर और शर्मनाक मामला है. यह मुद्दा इसलिए भी हमारी चिंता का विषय है, क्योंकि हर सत्र के दौरान प्रतिदिन आम जनता की गाढ़ी कमाई के लाखों रुपये खर्च होते हैं. इस आधार पर सांसद आम जनता के लिए कोई नजीर पेश नहीं कर पा रहे हैं. जब देश के सांसदों की यह स्थिति है तो आम जनता कैसे अपने कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील रह सकती है? बजटीय सत्र के दौरान राज्यसभा में आवंटित अवधि का 40 प्रतिशत हिस्सा हंगामे की भेंट चढ़ गया. सांसदों के अड़ियल रवैये की वजह से एक भी प्रश्न का जवाब नहीं दिया जा सका. लोकसभा की हालत भी कमोबेश राज्यसभा की तरह ही रही. वहां भी निर्धारित समय के भीतर किसी भी उल्लेखनीय कार्य का निष्पादन नहीं किया जा सका, जो पिछले बजटीय सत्र से भी बदतर है. वह भी सांसदों द्वारा निर्धारित संसदीय समय से अधिक देर तक बैठने के बावजूद.
अधिकांश बिल बिना बहस के ही पारित कर दिए गए. जबकि विधेयक पारित करने के दरम्यान बहस का होना स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक होता है. बहस ही बिल या विधेयक की आवश्यकता और उसकी प्रमाणिकता को सिद्ध करती है. बजट सत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण बिल महिला आरक्षण का था. किसी तरह से यह राज्यसभा में पारित भी हो गया, परंतु इसे पारित करने के दौरान अल्पमत सरकार की तऱफ से जो कुछ हुआ, वह निश्चित रूप से निचले स्तर का आचरण था. मार्शल द्वारा संसद सदस्यों को बाहर निकालना लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है. इस बिल को पारित करवाने की कवायद के कारण अन्य बहुत सारे महत्वपूर्ण मुद्दों को भी दरकिनार कर दिया गया. इसी सत्र में 2011 की जनगणना में जाति की जानकारी लेने के बारे में भी चर्चा की गई. महिला आरक्षण के समान ही वर्तमान संदर्भ में यह भी बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है. जाति आधारित जनगणना इसके पहले 1931 में हुई थी. जातीय जनगणना कराने के पीछे मूल उद्देश्य है, सभी जातियों की वास्तविक संख्या के बारे में जानकारी इकट्ठा करना और उसके आधार पर नए सिरे से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्लेटफॉर्म तैयार करना.
महंगाई भी इस सत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा थी, पर इस मसले पर स़िर्फ रस्म अदायगी का काम किया गया. आश्चर्यजनक रूप से इस विषय पर पहले भी कई बार चर्चा किए जाने के बावजूद हमारे सांसद बजट सत्र में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके. संसदीय सत्रों में हमेशा दोषपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली, जमाखोरी एवं कालाबाज़ारी आदि कारणों को महंगाई के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता रहा है, किंतु महंगाई ख़त्म करने के लिए किसी ने शिद्दत के साथ कभी कोई कोशिश नहीं की. तक़रीबन 15 सालों से महंगाई से देश का आम नागरिक त्रस्त है, पर इससे सरकार को कभी कोई सरोकार नहीं रहा. जबकि सरकार का परम कर्तव्य था कि वह इस पर नियंत्रण रखती. बाज़ार पर नियंत्रण न रख पाना निश्चित रूप से सरकार के लिए शर्म की बात है. फिलहाल शाक-सब्जी के दाम कुछ कम हुए हैं, किंतु अभी भी दूसरे खाद्य पदार्थों की क़ीमतें आसमान छू रही हैं. लिहाज़ा ज़रूरत इस बात की है कि संयुक्त संसदीय समिति का गठन करके महंगाई पर नज़र रखी जाए और इसे कम करने के लिए एक स्पष्ट नीति के तहत सकारात्मक क़दम उठाए जाएं. संसदीय सत्र की दुर्दशा का एक महत्वपूर्ण कारण यूपीए सरकार में वामपंथियों का न होना भी हो सकता है. वामपंथियों का हमेशा एक निश्चित एजेंडा होता है. वे एक निश्चित उद्देश्य के तहत काम करते हैं. आज यूपीए सरकार में बहुत सारे ऐसे दल शामिल हैं, जिनका देश की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है. उन्हें तो बस येन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहना अच्छा लगता है. इस कारण आजकल संसदीय सत्र में यूपीए सरकार के मुखिया तक को यह पता नहीं होता कि किस बिल का समर्थन सरकार के अन्य घटक दल करेंगे और किस बिल का नहीं. जो भी हो, संक्रमण के इस दौर में भी यूपीए सरकार को अपने घटक दलों के साथ सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए, ताकि आम आदमी का भला हो सके.
राजनीति की चादर ज़रूर मैली हो चुकी है, पर विधेयक को पारित कराने से पहले संबंधित मुद्दे पर स्वस्थ बहस का होना बहुत ही ज़रूरी है, क्योंकि कोई भी विधेयक पारित होने के बाद क़ानून बन जाता है और वह देश के नागरिकों पर लागू हो जाता है. अगर ग़लत क़ानून बन जाए तो उसका परिणाम बहुत घातक हो सकता है. आजकल तो संसद में आपत्तिजनक शब्दों के तीर भी राजनेता एक-दूसरे पर चला रहे हैं. किसी को गद्दार बोला जाता है तो किसी को कुत्ता. ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटनाओं की कोई सराहना करता है. फिर भी विडंबना यह है कि सभी लोग सब कुछ जानकर भी अंजान बने रहते हैं. शीघ्र ही संसद के सचिवालय के सौजन्य से अनपार्लियामेंट्री एक्सप्रेशन के नाम से 900 पन्नों की एक किताब हिंदी एवं अंग्रेजी में प्रकाशित की जाने वाली है. कहने का तात्पर्य यह है कि गंदा है, पर धंधा है वाली नीति पर देश के नेता बड़े गर्व के साथ चल रहे हैं. सांसद संसद में देश की जनता के प्रतिनिधि हैं. वे सरकार के कार्यकलापों के नियंत्रक भी हैं. सांसद सत्तापक्ष का हो या विपक्ष का, उसकी एक निश्चित एवं ज़िम्मेदार भूमिका होती है. वह किसी सरकारी कार्यालय का बाबू नहीं है. इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि सभी सांसद लोकतंत्र में अपनी भूमिका को समझें और सकारात्मक तरीक़े से इसे निभाएं भी.
संसद का प्रत्येक सत्र देश के लिए महत्वपूर्ण होता है. वहां पारित होने वाले विधेयकों से ही देश एवं जनता की दिशा और दशा तय होती है. इसलिए बदलते परिवेश की महत्ता को समझते हुए सभी सांसद आत्मावलोकन करें और एक ऐसी प्रणाली विकसित करें, जिसके द्वारा उनकी भूमिका और ज़िम्मेदारी दोनों को आसानी से तय किया जा सके. इसमें कोई चूक होने पर सज़ा का भी प्रावधान हो.
सांसदों के लिए ऐसा अनुकूल माहौल विकसित किया जाए, जिसके अंदर वे ख़ुद अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रह सकें, सत्र के दौरान न किसी तरह का कोई हल्ला-हंगामा हो और न ही किसी प्रकार की अशोभनीय स्थिति पैदा हो. संसदीय सत्रों की उपलब्धियों पर नियमित रूप से बहस-मुबाहिसा भी कराया जाए, आम जनता की राय ली जाए और उसके आधार पर क्षेत्र विशेष के प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय की जाए, ताकि वर्तमान कमियों को दूर करके व्यवस्था को दुरुस्त और चाक चौबंद बनाया जा सके.

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जिस्मफरोशी से पढाई के खर्च और महंगे शौक पूरे करने का फैशन


 



शादाब जफर शादाब
आज पूरी दुनिया में जिस्मफरोशी का बाजार गर्म है। पहले मजबूरी के तहत औरतें और युवतियां इस धंधे में आती थी लेकिन अब मजबूरी की जगह शौक ने ले ली है। आज नये जमाने की आड़ लेकर राह से भटकी कुछ लडकियों को बहला फुसलाकर बडे़-बडे़ सब्जबाग दिखाकर बाकायदा कुछ लोगों ने जिस्मफरोशी को कारोबार बना लिया है। आज सेक्स का धंधा एक बडे कारोबार के रूप में दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी परिवर्तित हो चुका है। इस कारोबार को चलाने के लिये बाकायदा आफिस बनाने के साथ ही कुछ लोगों ने मसाज पार्लरो के नाम से अखबारो में विज्ञापन देकर बॉडी मसाज की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा चला रखा है। इस के अलावा टीवी सीरियल और फिल्मो में नई हीरोईन के लिये ओडीशन के नाम पर भी आज ये धंधा खूब फल फूल रहा है। वही कुछ सरकारी गेस्ट हाऊस और होटल आज जिस्मफरोशी की इस बेल को खाद और पानी दे रहे है। आज पूरे देश में जिस्मफरोशी करने वालों का एक बहुत बडा नेटवर्क फैला हुआ है। बडी बडी चमचमाती गाडियों के सहारे एक शहर से दूसरे शहर लडकियो को पहुंचाया जाता है। आज जिस्मफरोशी का धंधा खुलम खुल्ला पुलिस की जानकारी में हो रहा है पर क्या किया जाये कहीं थाने बिक जाते है तो कहीं राजनेताओ का दबाव पड़ जाता है। ये ही वजह है कि आज जिस्मफरोशी ने हमारे सामाजिक ताने बाने को पूरी तरह से पष्चिमी रंग में रंग दिया है। बेबीलोन के मंदिरो से लेकर भारत के मंदिरो में देवदासी प्रथा वेश्‍यावृत्ति का आदिम रूप है। गुलाम व्यवस्था में मालिक वेश्‍याएं पालते थे। तब वेश्‍याएं संपदा और शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी। मुगलकाल में मुगलों के हरम में सैकडों औरतें रहती थी अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार किया तो इस धंधे का स्वरूप ही बदल गया। पुराने जमाने में राजाओं को खुश करने के लिये तोहफे के तौर पर तवायफों को पेश किया जाता था। उस जमाने में भी जिस्म का कारोबार होता था। वक्त के थपेडों से घायल लडकिया अक्सर कोठो के दलालों का शिकार होकर ही कोठो पर पहुचॅती थी।
लेकिन आज अपनी बढी हुई इच्छाओं को पूरा करने के लिये महिलाएं और युवतियां इस पेशे को खुद अपनाने लगी है। महज भौतिक संसाधनों को पाने की खातिर कुछ लडकियां आज इस धंधे में उतर आई है। बंगला कार से लेकर घर में टीवी फ्रिज एसी के शौक को पुरा करने के लिये ये युवतिया जिस्मफरोशी को जल्द सफलता पाने के लिये शार्टकट तरीका भी मानती है। इसी लिये आज इस धंधे में सब से ज्यादा 16 से 20 22 साल की स्कूली छात्राओ की हिस्सेदारी है। इन में से केवल 20 प्रतिशत छात्राएं ही मजबूरी के तहत इस धंधे में है 80 प्रतिशत अपने मंहगे शौक को पूरा करने के लिये इस धंधे में आई हुई है। किंग्स्टन विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर रॉन रॉबट्स ने सेक्स उद्योग से छात्र छात्राओं के संबंधो को जानने के लिये किये गये एक सर्वेण के मुताबिक ब्रिटेन के स्कूल और विश्‍वविद्यालयों में पढने वाली कई छात्राए अपने स्कूल की फीस जुटाने व दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने, अच्छे और मंहगे कपडे पहनने के लिये देह व्यापार का धंधा करती है। ये ही कारण है। पिछले दस सालों में देह व्यापार का ये कारोबार शौक ही शौक में 3 प्रतिशत से बढकर 25 प्रतिशत तक पहुंच गया।
भारत में भी जिस्मफरोशी का ये धंधा आज महानगरों के साथ ही बडे बडे शहरो से निकलकर छोटे छोटे गांव और कस्बों में बहुत तेजी के साथ बढ और फल फूल रहा है। देश का युवा वर्ग आज इस बुरी लत में पूरी तरह से डूब चुका है। पुराने जमाने के कोठो से निकल कर अब ये धंधा इन्टरनेट के जरिये कुछ अश्‍लील बेबसाइटो से हो रहा है। जिन में सिर्फ अपनी जरूरत के हिसाब से लिखकर सर्च करने से ऐसी हजारो बेबसाइट्स के लिंक आप को मिल जायेंगे जिन में स्कूली छात्राओं, मॉडल्स, टीवी और फिल्मी स्टारो को आप के लिये उपलब्ध कराने के दावे किये जाते है। ये ही कराण है कि आज इस देह के कारोबार के जरिये बहुत जल्द ऊंची छलांग लगाने वाली मध्यवर्गीय लड़किया, माडल्स, कालेज की छात्राए,दलालो के जाल में आसानी से फंस जाती है। और आज नये जमाने के नाम पर बार पार्टिया, निर्बंध सेक्स संबंधो के लिये सोशल नेटवर्किग साइटस, मोबाइल फोन्स, इन्टरनेट पर चेटस के रूप में मौज मस्ती का खजाना हमारे युवाओ को असानी से मिल जाता है। रात रात भर होटलो में बार बालाओ ओर कॉलगर्ल्स के साथ राते रंगीन करने के बाद सुबह उठने पर समाजिक चिंता और अपराधबोध से कोसो दूर युवा वर्ग जर्बदस्त आनंद प्राप्त करने का दावा तो करते है पर ये नादान ये नही समझ पा रहे कि आज जिस शौक के लिये ये अपने सफेद लहू को बेपरवाह होकर बहा रहे है कल ये ही इन्हे खून के आंसू भी रूलायेगा।
अभी हाइफाई इंफॉरमेशन टेक्नेलॉजी होने के बावजूद हमारे देश की पुलिस के लिये इस पेशे से जुडे लोगो और दलालों की पहचान काफी मुश्किल हो रही है। क्यो कि इस पेषे से जुडे तमाम लोगो की वेशभूषा, रहन सहन, पहनावा व भाषा हाईफाई होने के साथ ही इन लोगो के काम करने का ढंग पूरी तरह सुरक्षित होता है। स्कूली छात्राओं, माडल्स, टीवी और फिल्मी नायिकाओं पर किसी को एकदम से शक भी नही होता। सौ में से एक दो जगह पर मुखबिरो के सहारे अंधेरे में तीर मारकर पुलिस देह व्यापार कर रहे लोगो को पकडती जरूर है पर ऊंची पहुंच के कारण इन्हे भी छोड़ दिया या छोटे मोटे केस में चालान कर दिया जाता है। कुछ लोग विदेशों से कॉलगर्ल्स मंगाने के साथ ही अपने देश से विदेशों में टूर के बहाने 16 से 18 साल की स्कली छात्राओ को बडे बडे उद्योगपतियो और राजनेताओ से मोटी मोटी रकम लेकर उन के बैडरूमो में पहुंचा देते है। इस प्रकार मौजमस्ती करने के साथ ही इस घंधे से जुडी स्कूली छात्राओ का विदेश घूमने का का सपना भी पूरा हो जाता है।
यू तो जिस्मफरोशी दुनिया के पुराने धंधों में से एक है 1956 में पीटा कानून के तहत वेष्यावृतित्त को कानूनी वैधता दी गई, पर 1986 में इस में संशोधन कर के कई शर्ते जोड दी गई। जिस के तहत सार्वजनिक सेक्स को अपराध माना गया। पकडे जाने पर इस में सजा का प्रावधान भी है वूमेन एंड चाइल्ड डेवलेपमेंट मिनिस्ट्री ने 2007 में अपनी रिर्पोट दी जिस में कहा गया कि भारत में लगभग 30 लाख औरते जिस्मफरोशी का धंधा करती है। इन में से 36 प्रतिशत नाबालिक है। अकेले मुम्बई में 2 लाख सेक्स वर्कर का परिवार रहता है। जो पूरे मध्य एशिया में सब से बडा है। भारत में सब से बडा रेड लाइट ऐरिया कोलकत्ता में सोनागाछी, मुम्बई में कमाथीपुरा, दिल्ली में जीबी रोड, ग्वालियर में रेशमपुरा, वाराणसी में दालमंडी, सहारनपुर (यूपी) में नक्कासा बाजार, मुजफ्फरपुर (बिहार) में छतरभुज स्थान, मेरठ (यूपी) में कबाडी बाजार और नागपुर में गंगा जमना के इलाके जिस्मफरोशी के लिये प्रसिद्व है।
पिछले दिनो संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने अपरच्युनिटी इन क्राइसिस प्रिवेटिव एचआईवी फ्रॉम अर्ली अडोलसेंस टु यंग एडल्टहुडनाम से एक रिर्पोट जारी कि है जिस के मुताबिक सहारा के रेगिस्तानी इलाके के आसपास बसे देशों में एचआईवी से ग्रस्त किशोरों की तादात सब से ज्यादा है। इन देशों की फेहरिस्त में भारत भी शामिल है। इस रिर्पोट में कई चौकाने वाली बाते सामने आई है। इस वायरस की चपेट में दक्षिण अफ्रीका में सब से अधिक 210000 लडकिया और 82000 किषोर एचआईवी वायरस से पीडित है। 180000 लडकिया नाईजीरिया में जिन में 10 से 19 साल की आयु वर्ग के किशोर इस में शामिल है। वही 95000 हजार किषोर पूरे देश में एचआईवी संक्रमण की चपेट में है। लगभग 2500 युवा पूरी दुनिया में रोजाना इस वायरस की गिरफ्त में आते हैं। जिन युवाओं को देश, कल का भविष्य मानता है वो ही युवा वर्ग अपनी मौजमस्ती, ऐशपरस्ती, नादानी के कारण आज अन्दर ही अन्दर पूरी तरह से खोखले होते जा रहे है। वैष्विक तरक्की और सूचना क्रांति के दौर में आज हमारे सामने हमारे युवा वर्ग की ये एक भयानक सच्चाई है। जिस नई पीढी के कंधे पर दुनिया का भविष्य टिकेगा उस का शरीर आज एक ऐसे रोग से घिर चुका है जिस का दुनिया में अब तक कोई इलाज ही नही है। आज एचआईवी (हृयूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) के जरिये दुनिया का युवा वर्ग बडी तेजी के साथ इस मौत के दलदल में सिर्फ मौजमस्ती पढाई का खर्च और महंगे शौक के कारण खामोशी से समाता चला जा रहा है

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दिल्‍ली का बाबूः तीव्र सुधार



 

दीदी के कोलकाता जाने के बाद से रेल मंत्रालय का कार्यभार पीएमओ संभाल रहा है, कम से कम मंत्रिमंडल में नए बदलाव होने तक. इससे मनमोहन सिंह को उन सुधारों को लागू करने का अवसर मिल गया है, जिन्हें दीदी ने रोक रखा था. अभी हाल में मनमोहन सिंह ने रेलवे के उच्चाधिकारियों के साथ एक बैठक की. सूत्रों के मुताबिक, पीएमओ इस मंत्रालय पर अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है. पीएमओ द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि 100 करोड़ रुपये से अधिक के किसी भी प्रोजेक्ट की देखरेख सिर्फ पीएमओ द्वारा की जाएगी. इससे साफ हो गया है कि 77 हजार करोड़ रुपये के फ्रेट कॉरिडोर सहित अन्य भारी- भरकम प्रोजेक्ट्‌स की निगरानी पीएमओ ही करेगा. यह भी संकेत दिए जा रहे हैं कि भले ही किसी अन्य को इस मंत्रालय का चार्ज दे दिया जाए, लेकिन पीएमओ अपनी पकड़ ढीली करने वाला नहीं है.

अ़फग़ानी बाबू भारत आएंगे

इस कॉलम में पहले भी बताया गया है कि भारी-भरकम वेतन-भत्ते दिए जाने के प्रस्ताव के बाद भी देसी बाबू काबुल जाकर अफगानी बाबुओं को प्रशिक्षण देने में रुचि नहीं दिखा रहे थे, जबकि भारत और अफगानिस्तान के बीच इस संबंध में एक एमओयू भी है. बहरहाल, अधिकारियों को काबुल भेज पाने में असफल सरकार ने अब अफगानी लोकसेवकों को दिल्ली बुलाकर ही प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम बनाया है. उन्हें विभिन्न मंत्रालयों में ऑन जॉब ट्रेनिंग दी जाएगी. सूत्रों के मुताबिक, अफगानी बाबू जल्द ही दिल्ली आएंगे.

संकटकालीन प्रशिक्षण

कम ही लोगों को मालूम होगा कि नए कैबिनेट सचिव अजीत सेठ, जो के एम चंद्रशेखर से प्रभार लेंगे, भी दिल्ली एयरपोर्ट पर बाबा रामदेव से मिलने गए थे, लेकिन बाबू लोग मीडिया के सामने खुद को लो प्रोफाइल बनाकर रखते हैं, इसलिए वह मीडिया की नज़र से बच गए. इसलिए भी, क्योंकि मीडिया की नज़र तो चार मंत्रियों पर टिकी हुई थी. सेठ के वहां जाने के पीछे यह विचार था कि योग गुरु द्वारा सरकार के लिए जो राजनीतिक संकट खड़ा किया गया था, उससे निबटने का गुर वह सीखना शुरू कर दें, ताकि अपने नए रोल को निभाने में उन्हें परेशानी न हो. बहरहाल सेठ की नियुक्ति को लेकर यह कहा जा रहा है कि उन्हें वरिष्ठता के आधार पर कैबिनेट सचिव बनाया गया है, लेकिन सच्चाई यह नहीं है. कम से कम बिहार राजस्व बोर्ड के चेयरमैन एस पी केशवन उनसे भी वरिष्ठ हैं, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला.

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रंजन कुमार सिंह -शंकर दयाल की याद में चलेगा साल भर समारोह


बृहस्पतिवार, १४ जुलाई २०११

शंकर दयाल सिंह- लेखक सासंद और यायावर शंकरदयाल की 75 वी जंयती समारोह




जीवन भर यात्रा और कंही सुबह कहीं शाम बीताने वाले यायावर शंकर दयाल सिंह की मौत भी एक यायावर की तरह ही चलती रेल में ही हो गई। बतौर सासंद अपनी जीवन यात्रा समाप्त करने वाले लेखक और बिहार में साहित्य और मंच को लेकर हमेशा सक्रिय रहने वाले शंकर दयाल सिंह 27 दिसंबर 2011 को 75 साल पुरे करते। निधन होने के बाध भी इनके सुयोग्य पुत्रों ने अपने पिता की याद में एक साल तक तलने वाले समारोहों का आयोजन किया है। जिसकी शुरूआत राष्ट्रपति भवन में देश की पहली महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल करेंगी।
शंकरदयाल सिंह के पुत्र रंजन कुमार सिंह ने बताया कि 27 दिसम्बर 2011 के बाद पूरे साल भर बिहार झारखंड़ यूपी और दिल्ली में दर्जनों कार्यक्रम होगें। जिसमें कवि सम्मेलन संगोष्ठी से लेकर सांस्कृतिक समारोह शामिल है। रंजन ने बताया कि इन कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई जा रही है।
गौरतलब है कि लेखक और साहित्यकार कामता प्रसाद सिंह काम के पुत्र शंकर दयाल सिंह के साहित्य परिवार की यह तीसरी पीढ़ी है। रंजन ने बताया कि शंकर जी के गांव भवानीपुर, देव के कामता सेवा केंद्र से लेकर पिताजी की यादों से सराबोर उन तमाम स्थानों पर कोई ना कोई कार्यक्म जरूर किया जाएगा। इस मौके पर स्मारिका और कई पुस्तकों के प्रकाशन की भी योजना है। रंजन ने कहा कि सितम्बर तक साल 2012 तक चलने वाले सारे समारोहों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। यानी शंकर दयाल सिंह की यादों से नयी पीढ़ी को परिचित कराया जाएगाय।

 

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बेरोजगार ही रह गए लालू

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अनामी शरण बबल
प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर राजद मुखिया और पूर्व रेल मंत्री लालू यादव को अपनी बेकारी के दिन खत्म होने के आसार बढञ गए थे। पटना से दिल्ली कूच कपरे लालू जोर आजमाईश में लग गए , ताकि किसी भी तरह बेकारी का दंश खत्म हो। सोनिया के कभी खासमखास रहे लालू ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी तक से मुलाकात करके अपनी संभावनाओं को हवा दिया।मीडिया में इसका कयास लगना भी चालू हो गया कि ममका दीदी के कोलकाता चले जाने के बाद लालू का रास्ता भी साफ हो गया है, मगर सोनिया द्वारा लालू की बजाय पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को मंत्री बनाने के प्रस्ताव को ठुकराते हुए लालू ने रघुवंश का भी पता साफ कर दिया। लालू ने रघुवंश को मलाई खाने के अपनी कुर्बानी देने से इंकार कर दिया।
रघुवंश सिंह के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जीने रेल मंत्रालय पर से अपना कब्जा छोडना नहीं चाहती थी। हालांकि लालू ने रेल को लेकर अपनी जिदको छोड़ दी थी। वे मंत्रालय में आने के लिए किसी भी मंत्रालय को लेकर राजी हो गए थे.बताया जा रहा है कि सोनिया मैडम भी कभी सबसे भरोसेमंद रहे लालू को लाने के लिए राजी हो गई थी, मगर मैड़म की किचेन कैबिनेट ने लालू की सब्र की परीक्षा लेने के वास्ते मैड़म को राजद कोटे से केवल रघुवंश कोशरण  शामिल करने का प्रस्ताव रखने का आग्रह किया। सूत्रों के अनुसार लालू की निष्ठा का यह केवल परीक्षा थी। अगर लालू रघुवंश के लिए भी तैयार हो जाते तो ठीक मंत्रीमंडल विस्तार से ठीक पहले फिर लालू को भी शामिल कर लिया जाता।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार कांग्रेस सुप्रीमों के इस प्रस्ताव पर लालू करीब करीब भिफर पड़े, और इसे अपनी बेइज्जती मानते हुए किसी भी तरह रघुवंश के लिए राजी नहीं हुए। इस तरह अपनी तमाम संभावनाओं को खारिज करते हुए लालू यादव ने इस बार मंत्रीमंडल में आने का एक सुनहरा मौका अपने स्वार्थ के कारण गंवा दिया। उल्लेखनीय है कि 2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लालू, मुलायम और पासवान की तिकड़ी के के अलग होने यूपीए को करारा झटका लगा था। बाद में बिहार विधानसभा चुनाव में भी अलग सूर होने का खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ा था। इन तमाम कड़वाहटों के बावजूद सोनिया लालू को लेकर भावुक हो गई थी, मगर एंटी लालू लाबी की नेक सलाह से एक ही साथ सारा खेल खत्म हो गया, और लालू का खेल फिलहाल तो खत्म सा ही हो गया है।

 





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